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त्याग तो धर्म की पहली सीढ़ी है – जिनेन्द्र मुनि

सायरा (Udaipur)- उमरणा में श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ से जिनेन्द्र मुनि ने बताया कि अपने स्वार्थ के लिए किया गया त्याग वास्तविक त्याग की श्रेणी में नही आता हैं। जिस धर्म मे त्याग का महत्व नही रहा, वह धर्म काल के गर्त में समा गया।त्याग की गूंज हर क्षण,हर युग मे रही है।जीवन का कोई भी क्षेत्र हो,हर स्थान पर त्याग की ही महता है। त्याग मुक्ति पथ का पाथेय हैं। त्याग जीवन को हल्का बना देता हैं। मजबूरी में छोड़ा त्याग नही कहलाता है। राम का त्याग जनजन के लिए आदर्श बन गया। जिसने पिता के समक्ष दिए वचन को देखने के लिए मुस्कराते हुए राज्य का परित्याग कर दिया। मुनि ने कहा जिसने कभी प्रकाश नही देखा हो,उसके लिए अंधकार ही सबकुछ हैं। वह अंधकार को अपने लिए जीवन की भूमिका मान रहा हैं।अंधकार से इसे असंतोष नही है। प्रकाश की उसे कल्पना ही नही है। तो इच्छा होने का प्रश्न ही कहा?संत ने कहा इस संसार मे दो प्रकार की आत्मा है। एक वे जिन्हें प्रकाश के दर्शन ही नही है।वे अंधकार ही अंधकार मे भटकती रही है।और उनका भविष्य भी अंधकार युक्त ही होता है। दूसरे प्रकार की आत्माएं वे है जिन्हें एक बार प्रकाश तो मिल चुका हैं ।वे सतत प्रकाश के लिए उजाले में आने का प्रयास करती है।मुनि ने कहा राष्ट्र के लिए महाराणा प्रताप का,श्याम के लिए मीराबाई का जीवन त्याग की अमर कथाएं बन गये। भारत की आजादी के लिए देशभक्तों का बलिदान त्याग की ही कहानी है।कुछ लोग राष्ट्र के लिए अपने जीवन को कष्टों में डाल देते है।त्याग जब मानव जीवन का आधार नही बनेगा, विश्व मे दुःखों की कमी नही होगी।यह जैन धर्म तो त्याग के स्तम्भ पर ही खड़ा है। त्याग उसकी आधार शिला है।महामना तिलक ने भारत मे जैन धर्म को चिरस्थायी होने का कारण उसकी त्याग भावना को ही माना है।जैन संत ने कहा जो कुछ प्रकृति में दिखाई दे रहा है।वह भी त्याग का ही स्वरूप है।सागर अपने जल का त्याग करके धरती को जल देता है।बीज अपने अस्तित्व का त्याग करके वृक्ष में परिणत होता है।मुनि ने कहा यह सब जानकर भी मानव में त्याग के प्रति ललक क्यो नही?स्वयं का धर्मात्मा मानने वाला मानव त्याग का अर्थ क्यो नही जान पा रहा है।

  1. प्रवीण मुनि ने कहा मन की शुद्धि के लिए पहले यह शिक्षा देना आवश्यक है कि मन को अपने अधीन नही रख पाने पर यदि हम धर्म कर्म में लगे होंगे तो भी वह अपना कार्य करता रहेगा।
  2. रितेश मुनि ने कहा कि सदाचारी, दुराचारी, क्रोधी क्षमावान और कपटी के ये अनेक प्रकार की मनोवृत्ति उसके पूर्व कृत कर्मो के अनुसार ही होती है।
  3. प्रभात मुनि ने कहा कि आज हमारा दृष्टिकोण विशाल होने की जगह संकुचित होती जा रही है। जीवन के हर क्षेत्र में हमारी संकीर्णता हमको आगे बढ़ने के बजाय पीछे धकेल रही है।
Pavan Meghwal
Author: Pavan Meghwal

पवन मेघवाल उदयपुर जिले के है। इन्होंने मैकेनिकल इंजिनियरिंग की पढ़ाई के बाद स्टार्टअप शुरू किए। ये लिखने-पढ़ने के शौकीन है और युवा पत्रकार है। मेवाड़ क्षेत्र में पत्रकारिता कर रहे है।

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