कोटा में हर साल बढ़ती आत्महत्याएं चिंता का कारण, जिंदगी रही तो कैरियर भी बन जाएगा
■ ओम माथुर ■
‘‘आई एम सॉरी पापा’’ मैं इस साल भी नहीं कर पाया। यह उस छात्र का सुसाइड नोट है, जिसने हाल ही में कोटा में पंखे से लटककर आत्महत्या कर ली। धौलपुर के रहने वाले भरत राजपूत में परीक्षा होने से पहले ही जिंदगी से हार मान ली। वह कोटा में नीट की तैयारी कर रहा था और इसकी परीक्षा 5 मई को है लेकिन उसे पहले ही इस बात का अहसास हो गया कि वह तीसरी बार भी सलेक्ट नहीं हो पाएगा इसलिए उसने अपनी जान दे दी। भरत दो बार नीट दे चुका था लेकिन क्लियर नहीं कर पाया।
भरत की तरह मोहम्मद जैद, निहारिका, शुभ कुमार, नूर मौहम्मद, रचित, अभिषेक, उरूज और सुमित भी इस साल कोटा में सुसाइड कर चुके हैं। यह सभी राजस्थान, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश, बिहार, हरियाणा से नीट और जेईई की कोचिंग लेने देश की कोचिंग इंडस्ट्री कहे जाने वाले कोटा में आए थे। पिछले कुछ सालों से कोटा मेडिकल और इंजीनियरिंग की कोचिंग के साथ-साथ आत्महत्या के मामलों में भी देश भर में चर्चित रहा है। सवाल ये है कि विद्यार्थियों की खुदकुशी के लिए आखिर जिम्मेदार कौन है?
राजस्थान के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने हाल ही में कहा था कि कोटा में छात्रों की खुदकुशी के लिए सिर्फ कोचिंग संस्थान ही नहीं, अभिभावक भी जिम्मेदार हैं क्योंकि बच्चों पर उनका भी दबाव होता है। दिलावर कि इस बात से असहमत नहीं हुआ जा सकता।
इसमें कोई शक नहीं कि अभिभावकों की महत्वाकांक्षा कई बार अपने बच्चों की प्रतिभा का जान बूझकर सही आंकलन नहीं कर पाती है और वो उनसे ऐसे कैरियर में कामयाब होने की उम्मीद लगा बैठते हैं जिसमें बच्चों की रुचि नहीं होती। लेकिन माता-पिता के दबाव के आगे बच्चा भी इससे इंकार नहीं कर पाता है। कई विद्यार्थी ऐसे होते हैं, जो नीट-जेईई पास करने के लिए पूरी मेहनत करते हैं लेकिन जब कामयाब नहीं होते हैं, तो उन्हें अपने अभिभावकों पर बार-बार पड़ने वाले आर्थिक बोझ की चिंता सताने लगती है और वह इसके कारण दबाव महसूस करते हैं। कोटा में खुदकुशी करने वालों में अधिकांश विद्यार्थी मध्यमवर्गीय या गरीब परिवारों से थे। उनके परिवार के लोग किसी तरह से कोचिंग की दो से ढाई लाख रुपए की फीस जमा करा पाते हैं। ऐसे में नाकाम रहने वाले कई विद्यार्थियों को अपने परिवार पर आर्थिक दबाव बनने की चिंता सताती है। उसे लगता है उसके कारण उसका परिवार आर्थिक संकट में आया है। ऐसे में वो नाकामी की स्थिति अपना जीवन समाप्त कर लेता है।
देश के विभिन्न राज्यों से आकर कोटा रहने वाले विद्यार्थियों को अकेलापन भी सताता है। अपने परिवार से दूर रहकर वह कोचिंग संस्थान और हॉस्टल या पेइंग गेस्ट के कमरों में जीवन को समेट लेते हैं। दस बारह घंटे कोचिंग संस्थान में पढ़ाई उसके बाद हॉस्टल में तैयारी, थोड़े-थोडे समय बाद टेस्ट सीरीज और उसमें भी गला काट प्रतियोगिता। ऐसे में पड़ने वाले तनाव और बढ़ रहे दबाव को वो किसी से शेयर नहीं कर पाते और इसके चलते डिप्रेशन में जान दे देते है। कई अभिभावक तो अपने बच्चों को दसवीं कक्षा पास होते ही कोटा भेज देते हैं। उनसे 11वीं 12वीं की पढ़ाई डमी के रूप में कराई जाती है और उन्हें कोचिंग लेने के लिए धकेल दिया जाता है। 10 वीं कक्षा के विद्यार्थी की उम्र अमूमन 15-16 होती है।
कोटा में इस समय करीब 4 हजार हॉस्टल एवं 40 हजार से ज्यादा पीजी संचालित हैं और यहां लगभग ढाई लाख विद्यार्थी हर साल कोचिंग के लिए आते हैं। जिनमें से कुछ हजार विद्यार्थी ही कामयाब होते हैं। कोचिंग संस्थानों के माहौल और शिक्षा को व्यवसाय की तरह संचालित करने के कारण उनसे भी विद्यार्थी संतुष्ट नहीं रहते लेकिन उनकी मजबूरी होती है कोचिंग लेने की, इसलिए हर हाल में डटे रहते हैं। कोचिंग संचालक भी विद्यार्थियों में नकारात्मक माहौल को दूर करने के लिए बहुत ज्यादा प्रयास नहीं करते। जिस तरह किसी उद्योग में मशीन काम करती है, वैसे ही शिक्षा की फैक्ट्री बने कोटा में विद्यार्थी मशीन बनकर रह गए हैं। सुबह से रात तक वह किसी मशीन की तरह अपने जीवन का संचालन कर रहे हैं। ऐसे में थोड़ी भी नकारात्मकता और दबाव में वो बिखर जाते हैं। हर बार आत्महत्या के बाद इसे रोकने के उपायों पर चर्चा होती है, लेकिन लगता है ये चर्चा अगली आत्महत्या होने के बाद फिर बंद हो जाती है। आमिर खान की दो फिल्में तारे ज़मीन पर और थ्री इडियट ने यह संदेश दिया था कि बच्चों को वहीं करने दें, जिनमें उनकी रुचि है लेकिन फिल्म और वास्तविक जिंदगी में अंतर होता है। वास्तविक जीवन में हर अभिभावक अपने बच्चों को कामयाब देखना जाता है। भले ही इसके लिए उसे कुछ भी करना पड़े हैं। ऐसे में दबाव और तनाव तले बच्चे अपनी जीवन लीला खत्म कर लेता है। यह गंभीर समस्या है, इसका हल सरकार, प्रशासन, कोचिंग संस्थानों और अभिभावकों सहित समाज को मिलकर खोजना होगा क्योंकि कैरियर से ज्यादा जरूरी जिंदगी है।