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सार्थक और निर्दोष रुप से जीवन जीने की कला है धर्म – जिनेन्द्र मुनि

सायरा (Udaipur) – क्षेत्र के उमरणा में रविवार को श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में आयोजित धर्म सभा में जिनेन्द्र मुनि ने कहा कि विश्व मे कतिपय शब्दों के विषय मे सर्वाधिक भ्रांतिया व्यापक हैं। उनमें एक शब्द हैं धर्म और धर्म की व्याख्याएं आत्मा परमात्मा से शुरू होकर जड़ पदार्थो को स्पर्श करती हुईं नास्तिकता के स्तर को छू गईं , जैसे प्याज के छिलके उतरते उतरते प्याज का सारा स्वरूप ही समाप्त हो जाता हैं । ऐसे ही धर्म की व्याख्याएं बनातें – बनातें हमारे धार्मिकों ने इस मूल स्वरूप को ही समाप्त कर दिया हैं । फलतः आज धर्म के सामने वैज्ञानिकों ने प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया हैं । मुनि ने कहा कि धर्म की मूल व्याख्याओं में उनके प्रकार की पारस्परिक विसंगतिया पाई जाती हैं । अतः वे व्याख्याएं अनुपयोगी तक ही रह सकती हैं , किन्तु धर्म की उन सार्व भौमिक व्याख्याओं को आगे लाना चाहिए, जिसमे मत मतांतर के कोई भेद नही हैं। संत ने कहा सार्वभौमिक व्याख्याएं भी अनेक है किंतु उनमे प्रायः सभी संप्रदायों की सहमति हैं। धर्म को चरित्र निर्माण की कला के रूप में स्थापित करना। धर्म को चरित्र निर्माण के लिए उपयोगी बना देना धर्म की सार्वभौम उपयोगिता को स्थापित करना हैं। यदि हमारे धर्म के व्याख्या कार इस दिशा में प्रयास स्फूर्ति कर दे तो धर्म की उपयोगिता के सामने लगा प्रश्नचिन्ह हट सकता हैं। वैसे प्रत्येक व्यक्ति जो एक समाज राष्ट्र और परिवार का अंग हैं उसे निर्दोष जीवन जीना ही पड़ेगा। यदि वह ऐसा नही करेगा तो असामाजिक तत्व मान लिया जाएगा । जैन संत ने कहा उसके लिए शांति और सुरक्षा के सभी द्वार बंद हो जाएगा । समाज में जीना है तो निर्दोष और सार्थक बनकर ही जीना पड़ेगा। यदि इस निर्दोषता और सार्थकता का निर्माण धर्म की प्रेरणा से होगा तो ये विशिष्टताएं चिर स्थायी बन कर लोकोपकारक सिद्घ हो जाएगी।मुनि ने कहा धर्म के रचनात्मक स्वरूप को स्थापित करना धर्म की सच्ची सेवा हैं यही धार्मिकता भी हैं।

प्रवीण मुनि ने कहा कि अहंकार का मार्ग अशांति और संक्लेशो का मार्ग हैं। सारे संघर्ष अहम से पैदा होते है केवल उलझने पैदा करता है ।

रितेश मुनि ने कहा कि अधिकतर मानव अपने मे यह भ्रम पाल कर चलते है कि अनैतिक आचरण करके जीवन की सारी सुख सुविधाएं उपलब्ध की जा सकती है। किंतु ऐसा सोचना सचमुच अपने आपको धोखा देने के समान है।

प्रभात मुनि ने कहा कि जीवन मे आग्रहशील होना बुरा नही है बुरा है दुराग्रह पूर्ण होना। जो बात पकड़ ले वह गलत है और अपनी समझ मे भी वह गलती आ रही है।फिर भी उसे इसलिए पकड़ कर रहना है कि छोड़ देना अपमान जनक होगा

Pavan Meghwal
Author: Pavan Meghwal

पवन मेघवाल उदयपुर जिले के है। इन्होंने मैकेनिकल इंजिनियरिंग की पढ़ाई के बाद स्टार्टअप शुरू किए। ये लिखने-पढ़ने के शौकीन है और युवा पत्रकार है। मेवाड़ क्षेत्र में पत्रकारिता कर रहे है।

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