सायरा (Udaipur) रविवार को श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ उमरणा के स्थानक भवन में सभा के दौरान जिनेन्द्र मुनि ने कहा कि सामयिक जैन परम्परा का एक आवश्यक अंग हैं।सामायिक साधना सुख प्राप्ति का मुख्य साधन हैं। सामायिक को यदि हम जैन साधना परम्परा का प्राण तत्त्व भी कह दें तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी। सामायिक साधना साधु और श्रावक दोनों के लिए अनिवार्य है। साधु की सामायिक जीवन पर्यंत होती है जबकि श्रावक की सामायिक साधना निर्धारित समय के लिए होती हैं।दोनों साधना पथ के पथिक हैं अथवा एक ही साध्य लक्ष्य के साधक हैं। एक महाव्रती है तो एक अनुवर्ती। समत्व दोनों के जीवन मे अपेक्षित है।समत्व के अभाव में की जाने वाली क्रियाएं निष्प्राण हैं ,सामायिक के पाने के लिए जैन दर्शन में सामायिक का प्रावधान है । सामायिक जैनत्व को प्रकट करने का साधन है।सामायिक की साधना अनिवार्य रूप से प्रतिदिन होनी चाहिए। हर पल,हर क्षण जीवन को उत्स की ओर अग्रसर करने में अड़तालीस मिनिट का यह उपक्रम अत्युत्तम हैं।
Author: Pavan Meghwal
पवन मेघवाल उदयपुर जिले के है। इन्होंने मैकेनिकल इंजिनियरिंग की पढ़ाई के बाद स्टार्टअप शुरू किए। ये लिखने-पढ़ने के शौकीन है और युवा पत्रकार है। मेवाड़ क्षेत्र में पत्रकारिता कर रहे है।