सायरा (Udaipur) – क्षेत्र के उमरणा में जैन समाज के चातुर्मास के दौरान सभा में जैन संत जिनेन्द्र मुनि ने कहा कि मनुष्य संसार में अपने दुःख से इतना दुःखी नही हैं, जितना दूसरे के सुखमय जीवन को देखकर दुःखी हैं।अज्ञानी मनुष्य दुसरो का अनिष्ट और अहित सोचकर अपना अनमोल समय नष्ट करता हैं और कर्म बन्धन में स्वयं को जकड़े रहता हैं । अज्ञानी मनुष्य इस संसार मे रहकर रोड की गन्दगी अपने घर मे भरने जैसा हास्यास्पद कार्य कर रहा हैं। जो समय मनुष्य को स्व निर्माण में लगाना चाहिए, वह उस समय को इर्ष्या की ज्वाला में जलकर अपना अनिष्ट कर रहा हैं। उसे सोचना चाहिए कि क्या बिल्ली के छींकने से छींका टूटता है क्या ! मुनि ने स्पष्ट कहा कि हर आत्मा का अपना-अपना और अलग-अलग भाग्य होता हैं । अपनी भावना मलिन करने से स्वयं का भविष्य उज्ज्वल नही हो सकता । बिना कुछ दिये अगर हम किसी का भला नही देख सकते तो भला पैसे देकर भला करने की कल्पना करना व्यर्थ है,और करता भी हैं तो वह उसके पतन का कारण बनेगा। संत ने कहा दुश्मन के घर भी मंगल बाजे बजे ऐसी पावन भावना जिस दिन हमारे दिल मे पैदा हो जाएगी, उस दिन हमारी आत्मा के कल्याण को कोई नही रोक सकता।
मुनि ने कहा कि जो ऊपर से मैत्री का भाव दिखाता है परंतु अंदर से ईर्ष्या के कीटाणु पालता हैं,वह नरा धर्म मानवता पर कलंक हैं। प्रकृति वाले को यदि वरदान भी मिल जाए तो वह अभिशाप के रूप ने परिवर्तन हो जाएंगा। आवश्यकता हैं इस पर नियंत्रण करने का , लक्ष्य साधना को बनाये।
प्रवीण मुनि ने कहा कि ईर्ष्या की आग सबसे भयंकर है , यह बाहर प्रकट तो नही होती,परन्तु भड़कने पर पूरे विश्व को अपनी चपेट में ले लेती है। इससे किसी दूसरे का नुकसान हो न हो परन्तु स्वयं का जीवन अंधकार में डूब जाता है।
रितेश मुनि ने कहा कि ईर्ष्या जैसा खतरनाक शत्रु मनुष्य का कोई नही है मानसिक अशांति तनाव को मनुष्य स्वयं पैदा कर रहा है।
प्रभात मुनि ने जोर देकर कहा कि ईर्ष्या को त्यागे बिना स्थायी शांति संभव नही हैं , इस विषय पर विचार करते हुए मुनि ने कहा कि ईर्ष्या से स्व और पर का हमेशा बुरा ही होता है।
Author: Pavan Meghwal
पवन मेघवाल उदयपुर जिले के है। इन्होंने मैकेनिकल इंजिनियरिंग की पढ़ाई के बाद स्टार्टअप शुरू किए। ये लिखने-पढ़ने के शौकीन है और युवा पत्रकार है। मेवाड़ क्षेत्र में पत्रकारिता कर रहे है।