सायरा (Udaipur) – उमरणा में आयोजित सभा में जैन संत जिनेन्द्र मुनि ने कहा कि सभी मानव जिस समाज मे रहते हैं उससे सम्मान की आशा रखते हैं , सम्मान सभी को प्रिय है,अपमान अप्रिय हैं। मानव अपमान पाकर क्रोधित होता हैं , तो सम्मान पाकर फुला नही समाता । मानव चाहे स्वयं का सम्मान कर दे मगर दुसरो से वह सदैव सम्मान की चाह ही रखेगा।स्वयं चाहे अनीति पर चले, झूठ बोले,अन्याय का व्यवहार करें ,मगर दुसरो से वह सदैव सत्य,न्याय व नीति का व्यवहार चाहेंगा। दुसरो के व्यवहार पर हमारी नजर टिकी रहती हैं ।
मुनि ने कहा कि क्रोध मनुष्य का क्षणिक पागलपन हैं। लोहा भले ही गरम हो जाय परन्तु हथोड़े को तो ठंडा ही रहना चाहिए, गरम हथौड़ा अपने ही हाथ को जला देगा। गु्स्से में उठाया गया कदम कभी कभी गले की फांस बन जाता हैं। अतः स्वयं पर नियंत्रण अति आवश्यक हैं, क्रोध से मनुष्य की क्या स्थिति हो जाती हैं।क्रोध पर मनुष्य स्वयं का नियंत्रण नही रख पाता है अतः यह जीवन के लिये घातक बन जाता हैं।मनुष्य मनुष्य ही बना रहे इस हेतु क्रोध से बचना चाहिए, क्रोध मोह लोभ अहंकार आदि कषाय के सभी आपस मे भाई भाई हैं, क्रोध प्रीति का विनाशक हैं।
प्रभात मुनि ने कहा आजकल तो सामान्य व्यक्ति क्रोध तो करता ही है ,लेकिन अहंकार की ज्वाला में भी जल रहा हैं। मुनि ने कहा जलता दीपक भी हैं और पतंगा भी।लेकिन दीपक सभी को रोशनी देकर,आलोक देकर अपने को जलाता हैं।उसका जलना सार्थक हैं। पतंगा जल जाता हैं पर उसके जलने से किसी को कोई लाभ नही हैं, उनका जलना मूर्खता है और सफलता आलोक देने में है न कि जन्म लेकर नष्ट होने में है आपको जागृत होना हैं।सभा के दौरान स्थानक भवन में अशोक मादरेचा, सुरेश गांधी सोहन लाल मांडोत , पुखराज चपलोत, डाल चंद मांडोत राजू भाई , खुबी लाल भोगर उपस्थित रहे।
Author: Pavan Meghwal
पवन मेघवाल उदयपुर जिले के है। इन्होंने मैकेनिकल इंजिनियरिंग की पढ़ाई के बाद स्टार्टअप शुरू किए। ये लिखने-पढ़ने के शौकीन है और युवा पत्रकार है। मेवाड़ क्षेत्र में पत्रकारिता कर रहे है।