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आत्मा की दिवाली है संवत्सरी महापर्व – जिनेन्द्र मुनि

सायरा/क्षेत्र के महावीर जैन गौशाला उमरणा में श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ के जिनेन्द्र मुनि मसा ने कहा कि संवत्सरी पर्व जैसा अद्भुत पर्व संसार में कही नही मिलेगा। जब मनुष्य सहज भाव से अपने भूलो पर पश्चाताप करता हुआ दुसरो से क्षमा मांगता है, प्रेम पूर्वक हाथ जोड़ता है और मन में भरा हुआ अपराध वैर भाव मिटाकर प्रसन्नता से मुस्कुराने लगता है। उसकी इस मुस्कान में सचमुच में एक स्वर्गीय सौंदर्य होता है। यह प्रसन्नता जीवन के कण कण को प्रभावित कर जाती है।होली मिलन एक उत्सव है इसी प्रकार यह सामाजिक उत्सव है जिनमे बन्धु भाव ,स्नेह संवर्धन और पारस्परिक निकटता बढ़ती है। दूर दूर रहने वाले लोग परस्पर मिलकर एक दूसरे से परिचित होते है। होली सामाजिक उत्सव है। मनुष्य मनुष्य से मिलता है किंतु संवत्सरी तो एक ऐसा पर्व है जो सबसे पहले अपने आप को मुलाकात कराता है। मनुष्य को अपने आत्मा की पहचान कराता है। यह पर्व मनुष्य की बाहर आंख नही खोलता,वह तो खुली है किंतु भीतर की आंख खोलता है और कहता है तू अपने भीतर में देख,अपने आप को देख की तू क्या है। जो दर्पण तूने दुनिया के सामने कर रखा है। वह अपने सामने करके अपनी आत्मा का चेहरा देखो कि तुम क्या हो ? कैसे हो ? तुम्हारे भीतर कितनी बुराइयां है,कितनी अच्छाइयां हैं ? इस चेहरे पर कितने दाग है।इस महापर्व के साथ भी ईमानदारी नही बरतते है। सिर्फ औपचारिकता से मनाते है यह पर्व। संवत्सरी पर हमारे मन की गांठे खुल जाती है। सात दिन का सामूहिक कार्यक्रम होने के बाद संवत्सरी उपसंहार का निचोड़ है। हमारे धार्मिक जगत में संवत्सरी आत्मा की दिवाली का दिन है। दिवाली की तरह उपवास प्रतिक्रमण,आलोचना क्षमापना आदि आत्म शुद्धि की जाएगी। मन मे जमा विकारों का मैल, दुर्भावों का कूड़ा का कचरा हटाया जाएगा। मन और आत्मा की शुद्धि करने के लिए तपस्या प्रयाश्चित प्रतिक्रमण आदि किया जाता है।

प्रवीण मुनि ने कहा कि साधक एकांत में बैठकर अंतः करण की साक्षी से अपना निरीक्षण करता है। गत वर्ष मैने क्या क्या बुरे काम किए।अपने व्रतों में कहा कहा दोष लगाया। कहा पर अशुद्धि का मैल जमा है।मन की गहराइयों में उतरकर उसका चिंतन करता है। स्मृतियों पर जोर देकर उन कार्यो को याद करता है और चित्र की भांति एक एक पाप उसके सामने आते है।इस आत्म निरीक्षण से मन हल्का हो जाता है।

रितेश मुनि ने संवत्सरी के पावन पर्व पर प्रवचन में कहा कि जिस वीर के हाथों में क्षमा का अमोध शस्त्र है,उसका दुर्जन कुछ भी बिगाड़ नही सकते है। राम का बाण कभी खाली नही जाता था। वही क्षमा का तीर कभी निष्फल नही जाता है।रामबाण से ही इसकी विलक्षणता है। राम का बाण शत्रु का नाश करता था परंतु क्षमाबाण शत्रुता का ही नाश कर देता है। शत्रु को जीवनदान देता है।शत्रु को मित्र बनाता है और शत्रुता को मिटाता है। ऐसा अद्भुत शस्त्र किसी व्यक्ति के पास हो,उसे संसार मे कोई भय नही है। आज हम अभय बनने का संकल्प करें। मन की पवित्रता और मन की निर्भीकता का मार्ग संवत्सरी पर की आराधना करके मार्ग प्रशस्त करे।

प्रभात मुनि ने कहा कि पर्युषण का आज आठवां दिन पर्युषण महापर्व है।मन की गांठे खोलने का दिन है संवत्सरी । क्षमा पना का दिन है। मिच्छामि दुकडम कर मन के वैर भाव का दिन है। संवत्सरी के चार महत्वपूर्ण अंग है जो अश्वमेव कर्तव्य है।इसलिए सबसे पहला कर्तव्य है उपवास,दूसरा प्रतिक्रमण,तीसरा आलोचना और चौथा क्षमा पना।उपवास में तन,मन की शुद्धि होती है।विकारों की शांति और जिव्हा इंद्रिय का संयम करने के लिए उपवास जरूरी है।उपवास के बाद प्रतिक्रमण आलोचना और क्षमा पना।

मनुष्य कोई भी पाप निंदा आदि जो भी विकारी भाव मन है जब यह मन मे उठते है तो इनकी तीव्र तरंगे उठती है तो जैसे शांत सरोवर में कंकर पत्थर फेंकने से उसमे लहरों के चक्रवात उठने लगता है। इसी प्रकार कोई भी दुर्भाव दुर्विचार  हमारे मन मे आते है, उत्तेजना फैल जाती है।सभी जीवों को मन वचन ओर काया से कष्ट पहुंचाया है तो क्षमायाचना करते है।मिच्छामि दुखड़म ।

Pavan Meghwal
Author: Pavan Meghwal

पवन मेघवाल उदयपुर जिले के है। इन्होंने मैकेनिकल इंजिनियरिंग की पढ़ाई के बाद स्टार्टअप शुरू किए। ये लिखने-पढ़ने के शौकीन है और युवा पत्रकार है। मेवाड़ क्षेत्र में पत्रकारिता कर रहे है।

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