सायरा (Sayra) / गुरुवार को क्षेत्र के उमरणा महावीर गौशाला के स्थानक भवन में श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ कि आयोजित सभा मे जिनेन्द्र मुनि मसा ने कहा कि मानव-प्रतिभा का विकास साधन सुविधाओं पर ही आधारित हैं यह सत्य नहीं है। मानव-प्रतिभा के विकास के लिये आत्म विश्वास और कार्य करने की सम्यक विधि ये ही मुख्य आवश्यकता हैं। साधन सुविधाऐं की आवश्यकता इनके बाद आती हैं । ऐसे अनेक उदाहरण हैं कि अनेक साधन सुविधाओं के उपरान्त भी कई व्यक्ति अपना विकास नहीं कर पाते हैं। और जिनके पास पर्याप्त साधन नहीं होते हुए भी वे अपनी प्रतिभा का प्रर्याप्त विकास कर पाते हैं और इतिहास बनाकर चले गये । तो इस से स्पष्ट हो गया कि साधन ही मुख्य नहीं है। प्रतिभा का समुचित विकास नहीं हो पा रहा है। तो इसके लिए अधिकतर व्यक्ति साधनों के अभाव को दोष दे रहे है। किन्तु यह पूर्ण सत्य नहीं हैं । मूल बात तो यह है कि भारतीय जन जीवन में जो विकृतियां इन दिनों व्याप्त हो रही है। उन में ही एक विकृति अपनी विचार विपन्नता की है। अक्सर सुना जाता है कि हम भी बहुत कुछ कर लेते किन्तु हमारे पास साधन नहीं हैं । मुनि ने कहा कि जितने साधन हैं उनका उपयोग करके कुछ तो श्रेष्ठ कर किन्तु नहीं वह करेगा नहीं ,यही सोचता बोलता रहेगा कि मेरे पास साधन नहीं है। आलस्य और प्रमाद एक बहाना चाहता है। साधन के अभाव का बहाना आसानी से मिल जाता है। अतः उसे दुहराते रहेंगे और अपने विकास को कुठित करते रहेंगे। मुनि ने कहा देश विदेश के अविष्कारों और श्रेष्ठ आदर्शों का अध्ययन करें तो यही स्पष्ट होता हैं कि जितने भी अविष्कार हुए या जो महत्व पूर्ण कार्य हुए वे अभावों के बीच हुए। संपन्नता से नव सर्जन के द्वार बन्द ही हुए हैं खुले नहीं, हां अभावों में अवश्य विकास की किरण जगती हुई दिखाई दी है। जैन संत ने कहा मानव के पास अपना मस्तिष्क और अपना देह है । ये ही अनमोल सिद्धियां है। ये उपलब्ध है तो फिर अन्य साधनों का क्या ? वे तो मिले या न मिले। मस्तिष्क स्वस्तः मानव के विकास का मार्ग प्रशस्त कर देता हैं। करोड़ों का धन भी जो सफलता नहीं दे सकता मस्तिष्क वह सफलता प्रदान कर ही देता है। अपने मस्तिष्क में विकृत विचार न हों और सम्यक कार्य विधि हों तो बढ़ते हुए प्रगति चरण कोई नहीं रोक सकता। आत्म विश्वास बड़ी चीज है। धैर्य और दक्षता के साथ अपने कदम बढ़ाएं तो साधन अनायास ही सामने उपस्थित रहेंगे। प्रवीण मुनि ने कहा कि पहले के जमाने मे सीमित साधन थे। लेकिन लोग अपने विचारों के बल पर हर प्रकार की आवश्यकता का अविष्कार कर चुका हैं। प्रभात मुनि मसा ने मंगलाचरण करते हुए कहा कि जो भी इस सृष्टि में इस आंखों से दिखाई दे रहा हैं। वह नष्ट होने वाला है शाश्वतता धर्म ही साथ आएगा। धर्म कभी नष्ट नही होता हैं । परमात्मा के चरणों मे प्राश्चित कर शुरू से धर्म की शरण लेने से किये कर्मो की निर्जरा होगी और हम श्रेष्ठ कर्म कर अपने पुरुषार्थ से जीवन सफल करने मे कामयाब हो सकते हैं।
Author: Pavan Meghwal
पवन मेघवाल उदयपुर जिले के है। इन्होंने मैकेनिकल इंजिनियरिंग की पढ़ाई के बाद स्टार्टअप शुरू किए। ये लिखने-पढ़ने के शौकीन है और युवा पत्रकार है। मेवाड़ क्षेत्र में पत्रकारिता कर रहे है।