सायरा/(sayra) क्षेत्र के उमरणा में मंगलवार को श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ कि और से संत जिनेन्द्र मुनि ने कहा कि सामायिक समभाव का प्रतीक है। सामायिक करते समय एकाग्रता रखते हुए सम भाव रखना चाहिए। राग द्वेष रहित ज्ञान दर्शन और चारित्र से मोक्ष का भाव रखना है। मुनि ने कहा अनुकूल और प्रतिकूल दोनों परिस्थितियों में सम रहना है । मुनि ने कहा दुःख का कारण आर्थिक विषमता नही है,बल्कि मानसिक विषमता है।आर्थिक विषमता अगर दुःख का कारण होती तो सभी धनाढ्य व्यक्ति सुखी होते। विषम परिस्थितियों को पार करने के लिए भगवान ने सामायिक की विधि बताई,जिसे मन हल्का और भगवान के साथ जोड़कर सुख अनुभव किया जा सके। मुनि ने कहा संयमी के जीवन काल पर्यंत सामयिक होती है।श्रावक श्राविकाओं को गुरुजनों ने विषय कषाय में रहते हुए सामायिक करने की प्रेरणा दी गई है ।संत ने कहा जिनवाणी का हमारे ऊपर उपकार है।जिसे हमे सामायिक करने का अवसर प्रदान हुआ।संत रीतेश मुनि ने कहा कि अपने जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रत्येक आवश्यक क्रियाएं करता है।वह अर्थदंड रूप हिंसा है।बल्कि आवश्यकता व बिना किसी प्रयोजन के अनर्गल स्वछंद प्रवृति करता है वह अनर्थ दंड हिसा है।इससे महापाप का भागी होता है।मुनि ने कहा अपने जीवन को सीमित कर लेता है तो वह अल्पारंभी व अल्प परिग्रह होने से अल्प हिंसा का भागी है। प्रभात मुनि ने कहा कि जैन धर्म अनेकान्तवाद में मानता है लेकिन कर्मवाद में भी एक मुख्य स्थान रखता है।व्यक्ति जो भी कर्म करता है, उसे उसी के अनुरूप फल भोगना पड़ता है।जैन मुनि के चातुर्मास के इस पवित्र और आत्मकल्याण के अवसर का लाभ लेने लोग दर्शन कर प्रवचन श्रवण का सुअवसर प्राप्त करने के लिए स्थानक भवन पर पहुंच रहे है।
Author: Pavan Meghwal
पवन मेघवाल उदयपुर जिले के है। इन्होंने मैकेनिकल इंजिनियरिंग की पढ़ाई के बाद स्टार्टअप शुरू किए। ये लिखने-पढ़ने के शौकीन है और युवा पत्रकार है। मेवाड़ क्षेत्र में पत्रकारिता कर रहे है।