कभी शहर की शान रही झील हुई बर्बाद, किसी को चिंता नहीं
जब भी शहर की शान कही जाने आनासागर झील के पास से निकलता हूं। वहां खड़ी जेसीबी और पाकलेन मशीनें एटीएम और झील में पड़ी जलकुंभी रूपए जैसी लगती है। जब इनका पंजा आनासागर में जलकुंभी भरने उतरता है, ऐसा लगता है, मानो किसी ने एटीएम में कार्ड डाला हो। जैसे ही ये जलकुंभी लेकर उसे डम्पर में डालता है, महसूस होता है मानो कैश बाहर आने के बाद उसे जेब में डाला जा रहा हो। फिर अगले दिन झील में जलकुंभी वैसे ही भर जाती है, जैसे बैंक रोज अपने एटीएम में पैसे डलवाते हैं।
जलकुंभी ने आनासागर को तबाह कर दिया है और तीन माह से इसे निकालने के नाम पर पैसों की दिल खोलकर बर्बादी की जा रही। हर कोई जानता है कि जो तरीका इसे निकालने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, उससे ये कभी भी खत्म नहीं हो सकती। बस, हवा की दिशा में पूरी झील में इधर से उधर जा सकती है। फिर भी अब तक करोड़ों रूपए फूंक दिए गए हैं। लगता है जलकुंभी भी नगर निगम और उसके कार्मिकों के साथ खेल कर रही है। जिस दिन हवा के बहाव के साथ यह पुरानी चौपाटी पर आती है, नगर निगम सारे साधन इसे निकालने के लिए वहां झोंक देता है और शाम तक यहां पानी नजर आने लगता है लेकिन अगले दिन भी जब हवा का बहाव फिर इसी ओर होता है, तो पुरानी चौपाटी व लेक फ्रंट की ओर से सारी जलकुंभी फिर इधर ही बहकर आ जाती है। यह बहाव रोजाना इसी तरह नई से पुरानी चौपाटी, लेक फ्रंट से सामने की ओर चलते हुए जलकुंभी को बहाता रहता है। झील में अभी भी करीब आधा दर्जन नालों से सीधा और सीवरेज प्लांट से शोधित करने के दावे के बावजूद गंदा पानी आने से जलकुंभी दिन दूनी रात चौगुनी रफ्तार से बढ़ रही है। इसलिए हर दिन आनासागर ज्यादा हरा-भरा नजर आता है।
जलकुंभी निकालने के नाम पर तीन महीने में ठेकेदार, निगम के अधिकारी, अभियंता और कर्मचारी वारे-न्यारे हो चुके हैं। सरकारी व्यवस्था और कार्मिकों की नीयत ऐसी ही है कि किसी भी काम में लगे कार्मिक और ठेकेदार अपनी जेब का पूरा ध्यान रखते हैं। जलकुंभी निकालने पर अब तक नगर निगम ढाई करोड़ रूपए से ज्यादा खर्च कर चुका है। दो करोड़ की नई डिविडिंग मशीन खरीदी है जो एक खराब भी हो गई है। पुरानी डिविडिंग मशीन की मरम्मत पर भी काफी पैसा फूंका जा चुका है। जाहिर है सारा काम ईमानदारी से हो रहा है, इसका दावा तो मेयर और आयुक्त भी नहीं कर सकते। पहले ठेकेदार ने आधे डम्पर खाली रखकर इन्हें चलाया,ताकि ज्यादा चक्कर लग सकें। फिर इन्हें भी ज्यादा बताया गया। डीजल की हेराफेरी भी की गई। फिर जब ठेका खत्म हो गया, तो निगम ने सारा काम खुद संभाल लिया लेकिन बताया जा रहा है कि जो ठेकेदार करता रहा, वो ही अब निगम के लोग मिलजुलकर कर रहे हैं।
सवाल ये है कि जब जलकुंभी का समाधान बायोलॉजिकल ट्रीटमेंट ही है तो नगर निगम को 3 माह बाद इसकी कैसे याद आई? क्यों नहीं पहले इस पर विचार कर इसके एक्सपर्ट बुलाए गए? जिन संस्थाओं से निगम ने अब संपर्क किया है और उनसे लाइव डेमो देने के लिए कहा है,उनसे पहले भी तो संपर्क करके यह काम कराया जा सकता था? ऐसे में आखिर इन पैसों की बर्बादी का जिम्मेदार कौन होगा?
स्मार्ट सिटी योजना में आनासागर के चारों ओर करोड़ों रूपए खर्च करके बनाई गई चौपाटी भी जलकुंभी निकालो फर्जीवाडे के कारण अपना अस्तित्व खो रही है। जहां-जहां पोकलेन, जेसीबी जैसी मशीन लगाई गई। वहां चौपाटी पर रेलिंग-जालियां तोड़ दी गई। इसके अलावा निकाली गई जलकुंभी आस पास के इलाकों में ही डालने से इसकी बदबू ने लोगों का जीना हराम कर दिया है। विडंबना यह है कि जलकुंभी की समस्या से निपटने के प्रति ना तो अफसरशाही गंभीर है और ना ही शहर के जनप्रतिनिधि। विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी या पांचवीं बार विधायक बनी अनीता भदेल ने अब तक जलकुंभी की समस्या के समाधान को लेकर अपनी ओर से कोई प्रयास नहीं किए हैं। शायद मेयर से छत्तीस का आंकड़ा इसमें बाधा बन रहा हो लेकिन क्या शहर के सौंदर्य को बचाने के लिए भी तीन इंजन की सरकार के नुमाइंदे एक नहीं हो सकते। तीन इंजन यानी नगर निगम, राज्य और देश तीनों में भाजपा राज।