ओम माथुर @ अजमेर
दिल्ली में कांग्रेस के नेताओं की महामंथन बैठक में एकजुटता का जो संदेश दिया गया है, इसमें तो कोई नई बात नहीं है लेकिन बैठक के दौरान और बैठक के बाद सचिन पायलट के चेहरे की मुस्कान और बॉडी लैंग्वेज बता रही थी कि उन्हें राजस्थान में कोई बड़ी जिम्मेदारी मिलने वाली है। हालांकि राजस्थान के हर कांग्रेसी और राजनीति में रुचि रखने वाले लोगों को भी उम्मीद थी कि आज राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे और वेणुगोपाल जब बैठक में होंगे, तो गहलोत और पायलट के बीच चल रहे विवाद का निपटारा करने के लिए कोई ऐलान होगा। बैठक में तो ऐसा नहीं हुआ लेकिन पहले वेणुगोपाल और बाद में पायलट की बातों से यह साफ हो गया है कि पायलट के उठाए मुद्दों को महत्व देते हुए पार्टी बीच का रास्ता निकालते हुए उन्हें जिम्मेदारी देने के लिए भी तैयार है और इसके लिए अशोक गहलोत की भी सहमति ले ली गई है।
पायलट ने अपनी जन संघर्ष यात्रा के दौरान तीन मांगें उठाई थी। पहली, पेपर लीक के पीडित अभ्यर्थियों को मुआवजा देने की। दूसरी, आरपीएससी के पुनर्गठन की और तीसरी, वसुंधरा राजे के भ्रष्टाचार की जांच की। पायलट और गहलोत के बीच विवाद निपटाने में यह तीनों मांगे बाधा बनी हुई थी क्योंकि पायलट कह चुके थे कि वह अपनी मांगों से पीछे नहीं हटेंगे। बैठक के बाद वेणुगोपाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि पायलट के सभी मुद्दों का समाधान हो चुका है। फिर खुद पायलट ने कहा कि उन्हें इस बात की खुशी है कि आलाकमान ने उनके सभी मुद्दों पर संज्ञान लिया है और उन्हें आलाकमान जो भी जिम्मेदार देगा, वो उसे निभाने के लिए तैयार हैं। राजस्थान में एकजुट होकर लड़ा जाएगा। दो दिन पहले पेपर लीक के आरोपियों को उम्र कैद की सजा देने का कानून लाने और आज वेणुगोपाल द्वारा इसके साथ ही ये कहना कि आरपीएससी के सदस्यों की नियुक्ति की सरकार पारदर्शी प्रक्रिया तय कर रही है, इसी ओर संकेत दे रही है। देखना होगा कि आने वाले दिनों में वसुंधरा राजे के भ्रष्टाचार की जांच की मांग का क्या तोड़ निकाला जाता है क्योंकि भ्रष्टाचार ये मुद्दा पिछले चुनाव में खुद पायलट ने प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए खूब उठाया था।
दरअसल, पार्टी द्वारा राजस्थान में कराए जा रहे विभिन्न सर्वे में यह बात साफ उभरकर आ रही है कि बिना पायलट चुनाव लड़ने से कांग्रेस को नुकसान हो सकता है इसलिए पायलट को संतुष्ट कर और कोई जिम्मेदारी देकर सक्रिय करना जरूरी है। पिछले महीने 8 जून को गहलोत ने भी कहा था कि उनकी पायलट से परमानेंट सुलह हो गई है और खड़गे, राहुल गांधी और वेणुगोपाल ने उन दोनों को प्रेम से समझा दिया है। उसके बाद से ही दोनों खेमों में बयानबाजी बंद हो गई थी। ऐसे में आज यह संकेत साफ हो गए हैं कि पायलट जल्दी ही कांग्रेस में किसी पदाधिकारी की भूमिका में सक्रिय होंगे। इसके लिए राष्ट्रीय महासचिव एवं कुछ राज्यों का प्रभारी व राजस्थान के चुनाव प्रचार अभियान समिति का अध्यक्ष बनाने की चर्चा है। यह भी कहा जा रहा है कि उन्हें टिकट वितरण में पर्याप्त हिस्सा मिलने का भी भरोसा मिल गया है।
जल्दी टिकट, आसान नहीं
कांग्रेस कर्नाटक की तर्ज पर राजस्थान में भी दो महीने पहले उम्मीदवार घोषित कर देगी तो ये पार्टी के लिए फायदेमंद ही होगा। कारण ये है कि जिन वर्तमान विधायकों के टिकट कटेंगे या जिन मजबूत दावेदारों की जगह जिताऊ उम्मीदवारों को टिकट दिए जाएंगे, वे दो महीने में जितना विरोध व बगावत करनी है, करके थक जाएंगे और जिन्हें टिकट मिलेगा, वे अपने लिए कांग्रेसी कार्यकर्ताओं और जनता में आधार तैयार कर लेंगे। लेकिन सवाल ये है कि क्या कांग्रेस ऐसा कर पाएगी, क्योंकि अब तक के चुनावों का अनुभव है कि कई टिकट तो नामांकन भरने के एक दिन पहले तक फाइनल होते हैं और जैसा कि कयास लगाया जा रहा है कि कांग्रेस 40 से ज्यादा विधायकों के टिकट काटेगी, तो क्या बड़े पैमाने पर बगावत रोकना आसान होगा।
योजनाओं का लाभ तो मिले
बैठक में यह मान लिया गया कि अशोक गहलोत की योजनाएं राजस्थान में गेम चेंजर साबित होगी। राहुल गांधी, खड़गे सहित सभी ने इनकी तारीफ की और इन्हें प्रचार के लिए कार्यकर्ताओं को जुटने की सलाह दी लेकिन योजनाओं का प्रचार और उनके जमीनी स्तर पर लागू होने के अंतर को भी कांग्रेस को समझना होगा। आज भी बिजली के बिलों में छूट, चिरंजीवी योजना और पेंशन जैसी योजनाओं में पात्र लोग लाभान्वित नहीं हो पा रहे हैं। ऐसे में उनकी नाराजगी कांग्रेस को भारी पड़ सकती है।