- आनन्द देव जौनपुर (उत्तरप्रदेश)
देश के अधिकतर हिस्सों में भीषण गर्मी का कहर देखने को मिल रहा है। उत्तर भारत में टेम्प्रेचर के टॉर्चर ने लोगों को परेशान कर दिया है। यूपी के कई इलाकों में तापमान 43 डिग्री या उससे अधिक दर्ज किया जा रहा है। जून की शुरुआत से ही कई राज्यों में भीषण गर्मी ने परेशान किया हुआ है। अब उत्तर प्रदेश से लेकर दिल्ली और अन्य राज्यों तक के लोग भी गर्मी और झुलसा देने वाली धूप से परेशान हैं। इस विषय पर बात करते हुए सोसिओ पॉलिटिकल एक्टिविस्ट अजित यादव ने कहा है कि ऐसी भीषण गर्मी और हीट वेव और बढ़ते टेम्प्रेचर के पीछे जलवायु परिवर्तन है। जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग का असर इस साल की शुरुआत में ही दिखने लगा है। देश के बड़े हिस्से में तापमान औसत से अधिक दर्ज किया गया है और इस बार तीन मार्च से ही लू या हीटवेव का प्रकोप शुरू हो गया है।
अजित ने बताया कि हाल में ही कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के रमित देबनाथ और उनके सहयोगियों द्वारा एक अध्ययन किया गया है यह अध्ययन पीएलओएस क्लाइमेट नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। जिसमें कहा गया है कि, यदि भारत गर्म हवाओं के प्रभाव को तुरंत दूर करने में विफल रहता है, तो इसके सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल करने की रफ्तार धीमी हो जाएगी। अध्ययन के मुताबिक लू या हीटवेव ने संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को हासिल करने की दिशा में भारत की प्रगति को पहले से कहीं ज्यादा बाधित किया है। वर्तमान मूल्यांकन मैट्रिक्स देश पर जलवायु परिवर्तन से जुड़े लू के प्रभावों का पूरी तरह से अंदाजा नहीं लगा सकते हैं। मार्च 2023 अब तक का सबसे गर्म और 121 वर्षों में तीसरा सबसे सूखा वर्ष था। इस वर्ष में 1901 के बाद से देश का तीसरा सबसे गर्म अप्रैल भी रहा। भारत में, लगभग 75 प्रतिशत श्रमिक या लगभग 38 करोड़ लोग गर्मी से संबंधित तनाव का अनुभव करते हैं।
अजित कहते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग के पीछे विभिन्न सरकारी नीतियों और राजनीतिक मंशा की बड़ी भूमिका है। प्रावधानों के क्रियान्वयन में सख्ती बरते जाने की बजाय सरकार ने विगत वर्षों में प्रक्रियाओं और मानदंडों को शिथिल करने के लिए सुनियोजित अनदेखी की, ताकि उद्योग-धंधों की स्थापना और विस्तार में आसानी हो और प्रदूषण फ़ैलाने वाले उद्योग-धंधों को शामिल किये जाने में सुविधा हो।
केन्द्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) के दस्तावेज यह बताते हैं कि पिछले पांच सालों में ईआईए, 2016 की अधिसूचना में कार्यालय ज्ञापनों के माध्यम से लगभग 110 परिवर्तन किए गए। यह एक चौंकाने वाला आंकड़ा है। यद्यपि ये सभी कार्यालय ज्ञापन आम लोगों के लिए उपलब्ध हैं लेकिन इनमें जो परिवर्तन किये गये हैं, उन पर आम लोगों से किसी तरह की सलाह केवल इस आधार पर नहीं ली गयी क्योंकि ये परिवर्तन कानून में किसी भी परिवर्तन की प्रक्रिया से पूरी तरह अलग और असंबद्ध थे। अजित कहते हैं कि सरकारें पर्यावरण, ग्लोबल वार्मिंग, क्लाइमेट जस्टिस को सजावटी मुद्दा रखकर सेमीनार और कान्फेरेंसेस तक सीमित रखना चाहती हैं । आम आदमी में जागरूकता की कमी और चुप्पी ने सरकारों को ढुलमुल बनाया है।
उन्होंने जानकारी साझा की है कि यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंग्लिया के वैज्ञानिकों द्वारा साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित रिपोर्ट्स के अनुसार वैश्विक तापमान में हुई 17.3 फीसदी की वृद्धि के लिए अकेला अमेरिका जिम्मेवार है। वहीं चीन इस मामले में दूसरे स्थान पर है, जिसकी वजह से वैश्विक तापमान में 0.20 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। तापमान में हुई 0.08 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के लिए भारत जिम्मेवार है। यदि अन्य देशों से तुलना करें तो इस मामले में भारत का पांचवा स्थान है। मतलब की इस अवधि के दौरान वैश्विक तापमान में जितनी वृद्धि हुई है उसके 4.8 फीसदी के लिए भारत द्वारा किया जा रहा उत्सर्जन वजह है। उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में सभी देशों द्वारा वैश्विक तापमान में किया जा रहा योगदान घटता जाएगा। इसके बाद साल-दर-साल इसमें कोई इजाफा नहीं होगा, क्योंकि ज्यादातर देशों की शुद्ध-शून्य उत्सर्जन तक पहुंचने की प्रतिबद्धता या तो पूरी हो गई है या फिर उसको पार कर गई है।
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