सायरा (Udaipur) – श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ तरपाल में अक्षय तृतीया के पारणा महोत्सव महाश्रमण में जिनेन्द्र मुनि ने सभा संबोधित करते हुए कहा कि मानव धन्य हैं, जो अपने जीवन में सेवाधर्म का परिपालन करते हैं। इस बात को हम ऐसे भी कह सकते हैं कि दरअसल वही मनुष्य हैं ,जो अपने जीवन में सेवा धर्म को स्थान देता है। अपना पेट तो पशु भी भर लेता है। पर मनुष्य वही हैं जो दूसरों की पीडा को अपनी पीडा समझकर उसे दूर करने का हर संभव प्रयास करता है। किसी ने कहा भी है – अपने लिए जिये तो क्या जिये। मुनि ने कहा सेवा न केवल मानव-जगत के लिए, अपितु प्राणिमात्र के प्रति निःस्वार्थ सम्पूर्ण भाव है। प्रत्येक जीव को अपनी आत्मा के समान समझना, अनुभव करना सेवा और मनुष्यता का बीज मंत्र है। सेवानिष्ठ साधक अपने आपको उन सभी वृत्तियों से अलग रखता है, जो वृत्तियां ईर्ष्या, घृणा, हिंसा, स्वार्थपरता आदि को जगाती हैं।
साध्वी ड्रॉ संयमलता ने सेवाभाव पर प्रवचन माला मे कहा कि सेवाभाव में एक निष्पाप एवं विशुद्ध भावना उभरती है। जो सेवा से जुड़ा है, वह निश्चय ही संवेदनशील होता है। वह स्वार्थी नहीं, अपितु परमार्थी होता है। वह क्रोध को नहीं, क्षमा को अपनाता है। उसमें अभिमान नहीं, अपितु विनय होता है। वह सतत माया और मोह के आग्रहों से अपने आपको परे रखकर चलता है।
साध्वी ने कहा सेवा से जुड़ने का अर्थ अपनी आत्मा से जुड़ना है। प्रत्येक जीव की जो अंतर भावना है, उससे संलग्न हो जाना है। इस संलग्नता से व्यक्ति होकर भी नहीं होता है, व्यक्ति का अहंभाव खत्म हो जाता है।

Author: Pavan Meghwal
पवन मेघवाल उदयपुर जिले के है। इन्होंने मैकेनिकल इंजिनियरिंग की पढ़ाई के बाद स्टार्टअप शुरू किए। ये लिखने-पढ़ने के शौकीन है और युवा पत्रकार है। मेवाड़ क्षेत्र में पत्रकारिता कर रहे है।