शिल्पग्राम (Udaipur)- कहते हैं दीर्घकालीन परिकल्पना जब धरातल पर उतरती है तो वह आने वाले वक्त में अपनी अहमियत साबित करती ही है। इन दिनों शिल्पग्राम इसका जीता-जागता उदाहरण बन गया है। बता दें, पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के निधन के बाद राजकीय शोक के कारण हालांकि सांस्कृतिक प्रस्तुतियां रोक दी गई हैं, फिर भी शहरवासियों का शिल्पग्राम के प्रति उत्साह कम नहीं हुआ है। वजह है, मुक्ताकाशी मंच पर बना पिंक सिटी के हवामहल की प्रतिकृति, यहां लगे स्टोन के राशि चिह्नों के स्कल्पचर, गवरी सहित जगह-जगह लगे स्टोन के म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स और सांस्कृतिक झलक देतीं शानदार मूर्तियां। इन सब का निर्माण हुआ तब शायद ही किसी ने सोचा था कि कभी ये बड़े आकर्षण का केंद्र बनेंगे। अब वाकई यह सच साबित हो रहा है। बानगी देखें, शनिवार को एक दिन में 18 हजार से ज्यादा मेलार्थी आए और जमकर खरीदारी की । शिल्प स्टाल्स पर और फूड कोर्ट में दिन भर गजब की भीड़ रही। मुख्य रंगमंच पर बनाई गई जयपुर के हवामहल की प्रतिकृति भी कमाल का रोमांच पैदा कर रही है । उसे देखने लोगों की भीड़ उमड़ रही है। संपूर्ण मेला क्षेत्र में पिकनिक, सेल्फी सेलिब्रेशन और शॉपिंग का खूबसूरत माहौल देखा जा रहा है ।
शिल्पग्राम के दोनों दरवाजों के बाहर वाहनों की लंबी लंबी कतारें और शिल्पग्राम के अंदर सलीके से प्रदर्शित की गई पत्थरों की कलाकृतियां के आस पास सेल्फी लेने वालों की भीड़ इस बात की गवाह है कि उदयपुर के लोगों के मानस में शिल्पग्राम रच बस गया है। कई आगंतुकों का मानना है कि पिछले 10-12 वर्षों में शिल्पग्राम परिसर में जनरुचि के बहुत सारी कलाकृतियां जोड़ी गई हैं, जिनके कारण सांस्कृतिक प्रस्तुतियां बंद होने के बावजूद जनता में उत्साह न केवल बरकरार रहा, बल्कि उसमें बढ़ोतरी ही हुई है। उदयपुर के दीपक, उमेश, रघुवीर, मेधा, संगीता आदि कई मेलार्थी कहते हैं कि शिल्पग्राम उत्सव में सांस्कृतिक प्रस्तुतियां नहीं हो रही हैं तो शिल्पग्राम को अच्छी तरह से देखने का अवसर मिल रहा है।
केंद्र के कार्यक्रम अधिकारी हेमंत मेहता ने बताया कि केंद्र के निदेशक फुरकान खान ने अपने पहले कार्यकाल में दीर्घकालीन सोच और परिकल्पना के मुताबिक शिल्पग्राम को वर्ष पर्यंत जीवंत रखने के लिए कई नवाचार किए थे जिनका लाभ केंद्र को मिल रहा है। उन्होंने बताया कि 50 से अधिक वाद्य यंत्र और अनेक आधुनिक मूर्तियां अलग-अलग स्थानों पर स्थापित की गईं, जो अपने आप में शिल्पकला का अद्भुत नमूना तो हैं ही, साथ ही पर्यटकों को आकर्षित करने का एक अच्छा माध्यम भी हैं।
उन्होंने बताया कि इस बार फिर उनके ही कार्यकाल में पत्थरों में तराशे गए राशि चिह्नों के साथ ही गवरी के चरित्र तथा आदिवासी मुखौटे शिल्पग्राम उत्सव में स्थापित किए गए जो एक नए आकर्षण केंद्र के साथ-साथ ही मेवाड़ की आदिवासी कला का उत्कृष्ट नमूना भी हैं। संगम हाल में लगाई गई प्रदर्शनी में महलों और मंदिरों की लघुकृतियां भी लोगों को लुभा रही हैं। हेमंत मेहता का कहना है कि आज सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं है तो भी निदेशक खान की सोच के बदौलत शिल्पग्राम को कई ऐसे स्थाई आकर्षण बिंदु मिल पाए, जिन्हें देखकर लोग रोमांचित हो रहे हैं।
कला प्रेमियों में मायूसी के बाद जागा उत्साह–
केंद्र के सहायक निदेशक दुर्गेश चंदवानी का आकलन है कि सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं होने के कारण कला प्रेमियों में कुछ मायूसी अवश्य है, परन्तु उत्साह कम नहीं हुआ है। उनके अनुसार इसका फायदा शिल्पकारों के स्टाल्स पर खरीदारी में बढ़ोतरी में देखा जा सकता है। सांस्कृतिक कार्यक्रमों में लगने वाला समय अब खरीदारी में लग रहा है और स्टाल शिल्पियों के चेहरे ज्यादा खिल गए हैं ।
चांदवानी कहते हैं कि केंद्र निदेशक फुरकान खान (जो कि पूर्व में 2014 से 2019 तक केंद्र के निदेशक रहे) का विचार यही था कि मात्र झोंपड़ियों से बहुत लंबे समय तक शिल्पग्राम को जीवंत नहीं रखा जा सकेगा, इसीलिए ऐसे पाॅइंट्स बनाए जाएं जो कि खुले आसमान के नीचे बारिश और धूप को सहन करने के बाद भी स्थाई रूप से आकर्षण का केंद्र बन सकें और जो हमारी सांस्कृतिक धरोहर को भी परिलक्षित करते हों। इस बार इत्तेफाक से शिल्पग्राम उत्सव आयोजित करने का दायित्व फुरकान जी को पुनः मिला तो इसे बेहतर बनाने साथ ही सदैव की भांति कुछ नया करने के विचार ने नई गतिविधियां जुड़वा दीं। उत्सव को पूरी तरह “लोक के रंग-लोक के संग” थीम पर क्यूरेट किया गया। उदयपुर के दर्शक लोक कला के पारखी हैं, जिनका लोक कलाओं से आनंदित होने और कला और कलाकारों को सराहने का अपना अलग स्टाइल है। कलाकार भी यहां आकर बहुत प्रसन्न रहते हैं।
मंच मौन… असर गौण-
चांदवानी और मेहता कहते हैं कि उदयपुरवासियों के शिल्पग्राम प्रेम की इससे बड़ी निशानी क्या होगी कि सांस्कृतिक मंच मौन होने पर भी दर्शकों की संख्या में मामूली अंतर आया है। प्रेम के लिए और संस्कृति की समझ के लिए वो उदयपुर और आसपास के दर्शकों का हार्दिक आभार प्रकट करते हैं ।
क्या कहते हैं निदेशक–
“शिल्पग्राम परिसर में अभी भी बहुत संभावनाएं हैं और केंद्र का दायित्व है कि उदयपुर के दर्शकों को भारतीय संस्कृति के नए-नए पहलुओं से रोचक अंदाज से रूबरू करवाता रहे।”
-फुरकान खान, निदेशक, पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, उदयपुर।
Author: Pavan Meghwal
पवन मेघवाल उदयपुर जिले के है। इन्होंने मैकेनिकल इंजिनियरिंग की पढ़ाई के बाद स्टार्टअप शुरू किए। ये लिखने-पढ़ने के शौकीन है और युवा पत्रकार है। मेवाड़ क्षेत्र में पत्रकारिता कर रहे है।