गोगुंदा (Udaipur) – क्षेत्र के कड़ियां स्थानक भवन में शुक्रवार को जैन संत जिनेन्द्र मुनि ने अपने उद्बोधन में कहा कि मनुष्य जीना चाहता हैं ,मृत्यु से उसे भय लगता हैं।वह मृत्यु को टालने के उपाय भी करता है लेकिन मृत्यु किसी न किसी के बहाने आकर शरीर का चेतन तत्व निकाल ही लेती हैं। आज के मानव को आत्मा की उसको कोई चिंता नही हैं।मनुष्य को विश्व का सबसे अधिक समझदार प्राणी माना गया हैं। वह विवेकशील हैं, उसे अच्छे बुरे का ज्ञान हैं,फिर भी यदि स्वयं के लिए विचारशील नही हैं,धर्म के प्रति उसका रुझान नही है तो वह पशु से भी गया बीता हैं। इस जीवन की सफलता धर्म के कारण ही सम्भव हैं।धर्म की महिमा अद्भुत हैं ,धर्म के बिना मानव जीवन पंगु हैं।धर्म से ही जीवन का मूल्य हैं।
संत ने कहा मानव जीवन बहुत दुर्लभ हैं।यह तो हमे हमारे सुकर्मों का बहुत बड़ा उपहार मिला हैं। यदि इस जीवन को हमने खो दिया तो यह पुनः प्राप्त होने वाला नही हैं।बुद्धिमानी इसी में है कि इसका उपयोग कर ले, ज्ञान को जब तक जीवन के आचरण में नही उतारा जाता और जब तक धर्म के पथ ओर कदम नही रखा जाता,तब तक आगे बढ़ना असम्भव हैं।जिसमे धर्म भावना का अभाव होता है,वह जीवन के यथार्थ से बहुत दूर होता रहता है।जैन संत ने कहा जो दूसरों के दुःख को अपना समझ लेता है,वही धर्म के पथ का पथिक होता है।वह अपने धर्म का दीप जलाकर अपने जीवन का ही अंधकार नही हटाता,बल्कि दुसरो के जीवन मे भी उजाला भर देता।जो धर्म रहष्य जान जाता है,वह जीवन मे ज्ञान का प्रकाश पैदा कर देता है।मुनि ने कहा यही वह समय होता है,जिसमे मनुष्य अज्ञान के अंधकार को हटाकर आत्मा का कल्याण करने के लिए धर्म दीप को प्रज्वलित करने की क्षमता रखता है।जो ज्ञानयुक्त होता है,वह अपने जीवन पर विचार करता है।आंधी और तूफान के समय मे आग तो लगाई जा सकती है,पर दीप नही लगाया जा सकता।
Author: Pavan Meghwal
पवन मेघवाल उदयपुर जिले के है। इन्होंने मैकेनिकल इंजिनियरिंग की पढ़ाई के बाद स्टार्टअप शुरू किए। ये लिखने-पढ़ने के शौकीन है और युवा पत्रकार है। मेवाड़ क्षेत्र में पत्रकारिता कर रहे है।