सायरा (Udaipur) – शनिवार को क्षेत्र के तरपाल गांव के स्थानक भवन में जिनेन्द्र मुनि ने विचारों में बताया कि विश्व सभ्यता के सर्वोच्च शिखर की ओर ऊपर उठ रहा हैं, हर और प्रगति का शंखनाद सुनाई दे रहा हैं , ज्ञान के ऊपर विज्ञान हावी होता जा रहा हैं। सभ्यता के मुकाबले हमारी मानवीय संस्कृति लड़खड़ा रही हैं। संस्कृति तो आंतरिक विकास हैं जो अचानक समाप्त नही हो सकता। भवन नष्ट हो सकते है,पुल ढह सकते है,मगर संस्कृति को सहज में ही समाप्त नही किया जा सकता।हमारे विचार,रीति रिवाज,खाने पीने के ढंग,सहिष्णुता के भाव, बड़ों के प्रति सम्मान,छोटो के प्रति स्नेह,समाज के प्रति त्याग और उदारता,भाषा एवं उत्सव ये सभी संस्कृति की एक झलक मात्रा हैं। विश्व मे कई सभ्यताएं पनपीं उनके साथ उनकी अपनी संस्कृति थीं। चीन हड़प्पा की अपनी सभ्यता और संस्कृति हैं।दुनिया की अन्य प्राचीन सभ्यताएं जो अधिकतर नदियों के किनारे पनपी, वे काल की गर्त में समा गई, मगर भारतीय संस्कृति की जो धारा सिंध एवं गंगा के तटों पर पनपी,वह आज भी अपना परचम लहरा रही हैं। इसका मूल कारण हैं हमारी संस्कृति, मानवता,त्याग सहिष्णुता और धर्म के अमृत से सिंचित रही हैं।उसने सभ्यता की धूप से कभी भी उसे झुलसने नही दिया।चीन यूनान और भारत विश्व की इन प्राचीन संस्कृतियों में भारत की संस्कृति ही मानो अमरता का वरदान पाएं हुए हैं,आज भी जीवित हैं। मुनि ने कहा किसी को गुलाम बनाना है तो उस समाज या राष्ट्र की संस्कृति को नष्ट कर दो। वहां के निवासी हमेशा-हमेशा के लिए ग़ुलाम बन जाएंगे। यही तो हुआ हमारे देश मे एक हजार वर्षों तक विदेशी आताताइयों ने बर्बर हमले किये और तलवार के बल से अपनी हुक़ूमत कायम करके इन्होंने भारत की संस्कृति को पंगु बनाने का भरसक प्रयास किया। आश्रमों को जलाया, मन्दिरों को गिराया,अपनी भाषा और विचार हम पर लादने की भरपूर कोशिश की,धर्म परिवर्तन करने के लिए बाध्य किया गया,मगर क्या हुआ। विदेशी आये और वे भी इसी धरा में समा गये। वे अपनी संस्कृति का अधिक प्रचार प्रसार नही कर पाये। बल्कि स्वयं इसी संस्कृति के उपासक बनकर रह गए। जैन संत ने कहा भारत की संस्कृति पर सबसे बड़ा हमला अंग्रेजो ने किया। पश्चिम की भौतिक चकाचौंध के कृत्रिम प्रकाश में हम अंधे हो गये। अंग्रेज दो सौ वर्ष तक धीरे धीरे हमारी संस्कृति को धुन की तरह खोखला करते रहें। हिंदुस्तान को सदैव अच्छा बनाये रखने का कर्तव्य देशवासियों का है। भारतीय संस्कृति संयम प्रधान संस्कृति हैं तभी तो संत संयम का संदेश देते हैं। जो संयम से युक्त है दुनियां की सभी शक्तियां उसकी मुठ्ठी में है। संयमशील साधक के चरणों मे दुनिया सिर झुकाती हैं। विश्व विजय करने का स्वप्न लिए सिकन्दर जब सिंधु तक आया तो उसने साधक दंण्डायायन के बारे में सुना और उसने सेवकों को आदेश दिया कि उस साधक को हमारे पास आने का संदेश दो। क्या दंण्डायायन सिकन्दर के पास गया नही गया। मजबूर होकर सिकन्दर को ही आश्रम में जाकर सिर झुकाना पड़ा , मुनि ने कहा यह संयमी साधक की शक्ति है।
Author: Pavan Meghwal
पवन मेघवाल उदयपुर जिले के है। इन्होंने मैकेनिकल इंजिनियरिंग की पढ़ाई के बाद स्टार्टअप शुरू किए। ये लिखने-पढ़ने के शौकीन है और युवा पत्रकार है। मेवाड़ क्षेत्र में पत्रकारिता कर रहे है।