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कुटिलताएं आखिर वैर – विरोध को बढ़ातीं हैं – जिनेन्द्र मुनि

सायरा (Udaipur) – क्षेत्र के उमरणा में श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ की सभा में जिनेन्द्र मुनि ने कहा कि भारत की एक कहावत हैं जर ,जोरु और जमीन जोर की नही तो किसी और की। इसी कहावत के आधार पर प्राचीन काल मे राजाओं, जमींदारों भूमिहारों तथा सम्राटों में धन लिप्साओं के कारण एक दूसरे के खजाने जो लूटने के लिए परस्पर लड़ाई होती थी। जो जीत जाता वह लूट का माल अपने क़ब्ज़े में कर लेता था। इसी कारण राज्य लिप्सा और अपने राज्य का क्षेत्रफल बढ़ाने के लिए दो राजाओं में परस्पर युद्ध होता था। व्यावहारिक जगत में वैर विरोध धन के लिये, स्त्री के लिए जमीन जायदाद के लिए,जाति संप्रदाय और अपराधों के प्रतिशोध और अहंकार युक्त वाणी के कारण परस्पर वैर बढ़ जाता हैं ,इससे एक दूसरे पर घृणा उत्पन्न होती है।इतिहास ऐसे अनेक युद्धों और परस्पर वैर विरोध से भरा पड़ा है। जातिगत या वंशगत विद्वेष तो पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता हैं। पांच सात पीढियां बीत जाती है,फिर भी दोनों पक्ष के लोग उस वैर विरोध को भूलते नही हैं। संत ने कहा सम्प्रदाय मत पंथ की लेकर भारत मे ही नही ,विदेशो में भी परस्पर वैर विरोध लड़ाई झगड़ा ,वाद विवाद और रक्तपात हुआ हैं। वैर विरोध समय समय पर होते रहते है।समाज में भी आपस मे वैर विरोध या विरोधाभाषी स्थिति का निर्माण होता रहता हैं,लेकिन उसमें विरोध करता हैं,वह धार्मिक परिधि में नही आता है। वह अधर्मी हैं। विरोध होता है तो संघर्ष और लड़ाई का रूप धारण कर लेता है। यह सभी विरोध के कारण होता हैं। जबकि अहिंसा का प्रयोग और विकास भारत मे सदियों पहले हो चुका हैं। जैनों में भी थोड़ा सा मतभेद को लेकर साम्प्रदायिक मतभेद को लेकर संघर्ष विद्वेष और विरोध उभर आता है।

मुनि ने कहा इसका मुख्य कारण अहंकार है। अहंकार विषैला विकार है। विकार के कारण उत्पन्न विरोध कभी भी शांत नही होता। जैन संत ने कहा अनेकान्तवाद को ध्यान में रखकर केवल अपने अहंकार को, अधिकार को और स्वार्थ को लेकर परस्पर संघर्ष भी सम्प्रदायों में चल रहा है इससे वैमनस्य बढ़ता है। मुनि ने कहा भयंकर अशुभ कर्म का बंधन होता है।इसके लिए कोई भी शांत दिल से विचार करने के लिए तैयार नही हैं। राज्य को लेकर ही नही अपने से भिन्न राष्ट्र को दुश्मन समझ कर पड़ोसी देश भारत के साथ विभिन्न तरीकों से लड़ रहे हैं।इसी तरह का संघर्ष और सरकार के साथ पंजाब और असम भी भी चला था। मुनि ने कहा एक दूसरे की कटु आलोचना आक्षेप प्रत्या क्षेप के कारण वैर विरोध चलता हैं। यह अनुचित है, इससे राष्ट्रभक्ति के बदले पक्ष भक्ति ही दृष्टिगोचर होती हैं।आज एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र को विकसित देखकर ईर्ष्या वश किसी भी बहाने युद्ध छेड़ने का प्रयास करते है। अभी भी युद्ध चल रहे है।जिसमे अनेक देश सहयोग कर रहे हैं। यह कुटिलता आखिर वैर विरोध को बढ़ातीं हैं। रितेश मुनि ने कहा कर्म पर आवरण चढ़ जाने से भोगना तो होती हैं। शुभकर्म के लिए हर समय प्रयत्न करना चाहिए। कर्म अकर्म नही बने उसका हर-एक को ख्याल रखना हैं। कर्मो की गति न्यारी हैं । आत्मा पर कर्मो का आवरण आ जाने से आत्मा अशुद्ध कर्मो के भार सहन नही कर पाती है, उसकी भोगना होती ही हैं।

प्रभात मुनि ने कहा कि पत्थर से हम कामना नही करते है कि वह किसी के दुःख दर्द और मुश्किलों को समझे,किन्तु मानव होकर भी जो पत्थर की तरह संवेदनहीन रहे तो उसे पत्थर नही तो और क्या कहना चाहिए।

Pavan Meghwal
Author: Pavan Meghwal

पवन मेघवाल उदयपुर जिले के है। इन्होंने मैकेनिकल इंजिनियरिंग की पढ़ाई के बाद स्टार्टअप शुरू किए। ये लिखने-पढ़ने के शौकीन है और युवा पत्रकार है। मेवाड़ क्षेत्र में पत्रकारिता कर रहे है।

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