सायरा (Sayra) / शनिवार को उमरणा में चल रहे चातुर्मास के दौरान संत जिनेन्द्र मुनि ने कहा कि हृदय की वक्रता का नाम ही माया हैं।कुटिल व्यक्ति वक्रता एवं माया से ओतप्रोत रहता हैं । अतः वहा धर्म का भाव ठहर नही सकता जीवन में धर्म की ज्योति जगानी है तो वक्रता की क्षार भूमि को स्वच्छ करें । माया से अपने आपको बाहर निकालने का प्रयत्न करना चाहिए। जो माया के अंधकार से हट गया,उसी ने परम ज्योति के दर्शन किये है। माया से मुक्त जीवन ही आनन्द की अनुभूति दे सकता हैं तथा जन्म के दुःखों को दूर कर सकता हैं। संत ने कहा माया के जूठे बंधन में बंधकर निज धर्म से विमुख बनकर अपना ही अपकार करता चला जाता हैं। स्वयं को चल कपट व दंभ से दूर रखना चाहिए।कपट वह विष है जो,आलोचना के अमृत को गरल में रूपांतरित कर देता है।धर्म के पथ पर चलना है तो माया के बंधन ढीले करने पड़ेंगे।
विचार और रोग के बीच गहरा संबंध हैं – प्रवीण मुनि
मुनि ने कहा विचार और रोग के बीच गहरा संबंध है।आदमी क्या खाता है,यह महत्व की बात नही है।महत्व की बात तो यह है कि वह किन भावनाओ,किन विचारों और कैसे मन के साथ खा रहा है। दूषित मन से खाया गया भोजन विषाक्त पैदा करता हैं। घृणा उत्तेजना वैमनस्य ईर्ष्या महत्वकांक्षा अर्थात अनेक कुविचार जहां मन को कुंठित बनाते है,वही शरीर को रक्तचाप हृदयरोग आदि भयंकर रोग से कमजोर बना देता है।मुनि ने कहा तन की स्वच्छता निर्मल मन की निशानी है।
शांतिप्रद जीवन के लिए चुनना होगा महावीर मार्ग – रितेश मुनि
ने कहा कि शांतिप्रद जीवन जीना हैं तो महावीर का मार्ग ही चुनना होगा।अहिंसा प्रेम और करुणा को जीवन का उद्देश्य बनाना होगा। जब तक प्रत्येक राष्ट्र का नागरिक अहिंसा को नही समझ लेता,शांति के लिए किए गए सभी प्रयास थोथे साबित होंगे।
प्रभात मुनि ने कहा पहले अपने आप मे विश्वास जागृत करे।आपका सोच सदैव सकारात्मक रखना हैं।अच्छे कार्य के साथ जुटने की जरूरत है।मनुष्य मन में अच्छे भाव जगायेगा तो उसे हर और प्रशंसा ही मिलेगी।
Author: Pavan Meghwal
पवन मेघवाल उदयपुर जिले के है। इन्होंने मैकेनिकल इंजिनियरिंग की पढ़ाई के बाद स्टार्टअप शुरू किए। ये लिखने-पढ़ने के शौकीन है और युवा पत्रकार है। मेवाड़ क्षेत्र में पत्रकारिता कर रहे है।