सायरा (Sayra) – उमरणा में चल रहे जैन चातुर्मास में जिनेन्द्र मुनि ने बताया कि धर्म जीवन के अभ्युदित का एक साधन हैं ।धर्म व्यक्ति को अपने आप में जोड़ता हैं । जो अपने आप से जुड़ा है, वह जीवन मे पूर्णतः प्रमाणिकता एवं नीति सम्मातता के साथ चलता है। संत ने कहा कि धार्मिक व्यक्ति स्वार्थों का संपोषक नहीं होता।जो व्यक्ति अपने निजी स्वार्थों की सम्पूर्ति के लिए शोषक बनकर किसी के लिए घातक बन जाता है, वह धार्मिक होने की कसौटी पर खरा नही उतरता है। जिसके जीवन मे धर्म समाविष्ट हो गया ,वह एक विशिष्ट व्यक्तित्व का धारक होता हैं। उसकी प्रत्येक प्रवृति में लोक-मंगल पुष्ट होता हैं। संत ने कहा धर्म कभी भी विकृतियों का पोषण नही करता।
मुनि ने कहा दूध मीठा होता हैं ,जो मिठास है,उसमें सुई की नोंक भर भी संशय नही है,पर उसे यदि कड़वी तुम्बी में रखा जाएगा तो वह खराब होगा ही। हमारी कथनी और करनी की एकरुपता आपेक्षित है। किसके जीवन मे धर्म साधना की सुवास है ,वही जीवन सफलता की कसौटी पर खरा उतरता हैं। जिसमें प्रमाणिक्ता है, वहीं सच्चे अर्थों में धार्मिक है।
प्रवीण मुनि ने कहा कि जो लोग अधर्म में समय बर्बाद कर देते है,उसका जीवन निरर्थक है। समय को निरर्थक रूप से व्यतीत न करना विवेक सम्मत दृष्टिकोण है।
अत्यंत पुण्योदय होता है, तब मनुष्य जन्म प्राप्त होता है – रितेश मुनि
रितेश मुनि ने कहा कि जब अत्यंत पुण्योदय होता है, तब मनुष्य जन्म प्राप्त होता है। यह तो निर्विवाद सत्य हैं कि हमारा पुण्य उत्कृष्ट है, इसलिए मनुष्य का जन्म प्राप्त हुआ हैं । हमारे जीवन का धैर्य अधर्म नही,परन्तु धर्म है। धर्म त्याग और सदाचार ही हमे पशुत्व से अलग करता हैं। भौतिकता के अंबार खड़ा कर देना जीवन का लक्ष्य नही है।जीवन मे धर्म अध्यात्म की सुवास है,वही जीवन धर्म और अध्यात्म का होना नितांत आवश्यक है।आज के भौतिकवादी युग मे मनुष्य ने भौतिक दृष्टि से काफी प्रगति की है,परन्तु इतना होने के बावजूद उसके जीवन मे सुख चैन और मानसिक शांति नही है।
Author: Pavan Meghwal
पवन मेघवाल उदयपुर जिले के है। इन्होंने मैकेनिकल इंजिनियरिंग की पढ़ाई के बाद स्टार्टअप शुरू किए। ये लिखने-पढ़ने के शौकीन है और युवा पत्रकार है। मेवाड़ क्षेत्र में पत्रकारिता कर रहे है।