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सेवा और सहयोग नैतिक आचरण ही नहीं धार्मिकता भी है – जिनेन्द्र मुनि मसा

सायरा (Sayra)/ क्षेत्र के जैन समाज के चतुर्मास के लिए उमरणा में श्री महावीर गौशाला में ठहरे श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन संघ संत जिनेन्द्र मुनि मसा ने शनिवार को प्रवचन माला में कहा कि पीड़ित मानवता की सेवा मानव की उदात्तता भावनाओं का परिणाम है। वे मात्र नैतिक आचरण ही नहीं है बल्कि धार्मिकता भी है क्यों कि परोपकार का भाव और देय वस्तु के प्रति निर्ममत्व का भाव आत्म भाव है। आत्म भाव में ही धर्म हैं , मानव के जन्म लेने के बाद जब तक वह जीवित रहता है तब तक प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से हजारों व्यक्ति उसका सहयोग करते हैं , जन सहयोग से ही मानव जीवन का विकास होता है। उदाहरण स्वरूप समझिए कि एक बच्चा सड़क पर खेल रहा हैं और कोई वाहन तेजी से आ रहा हैं राह चलते व्यक्ति ने बच्चे को उठाकर एक तरफ ले लिया बच्चा कुचल सकता था किन्तु दो अनजाने हाथों ने बचा लिया । कितना उपकार किया अंजाने हाथों ने, उनके सहयोग से जीवन बच गया। बचाने वाला नहीं जानता हैं कि किसने बचाया गया है और बचने वाला भी नहीं जानता कि उसे अंजाने हाथों से नव जीवन मिला है किन्तु मानवता की सेवा की एक महान घटना अचानक ही घटित हो गई। मुनि ने कहा वह अभयदान सेवा इतना महत्व पूर्ण है कि उसकी तुलना किसी भौतिक पदार्थ से नहीं की जा सकती। करुणा और प्राणी रक्षा का भाव आना परम पवित्र आत्म भाव है। उक्त घटना से यह समझ में आ जाना चाहिये कि अपना जीवन भी हजारों अंजाने हाथों के सहयोग से विकसित हुआ हैं । लोक जीवन के इस अव्याख्यायित उपकार का ऋण हमे मानवता की सेवा कर के ही सकते हैं।

हमारी संस्कृति सेवा की ही संस्कृति है। भगवान ऋषभदेव ने कल्पवृक्ष विच्छेद के बाद मानव और पशुओं की सुरक्षा के लिये कृषि विज्ञान विकसित किया आज पूरा उसका लाभ उठा रहा है। सेवा और करुणा से प्रेरित किया गया कृषिका प्रयोग बहुत सफल रहा। सेवा और जीव दया के हजारों प्रसंग अनगिनत घटनाएं हमारे इतिहास में भरी पड़ी है। आज यदि हम सेवा और सहयोग के मार्ग को त्याग कर न सिर्फ स्वार्थ में अंधे होकर जीने लगे है तो यह अपना सांस्कृतिक अध्यात्मिक पतन है। धन संचय को जीवन का मौलिक लक्ष्य न बनायें। अपने धन का पीड़ित मानवता की सेवा में उपयोग करने से न केवल धन का सदुपयोग होगा अपितु अध्यात्मिक दृष्टि से पुण्यों प्रार्थना का लाभ भी मिलेगा ।

प्रवीण मुनि मसा ने कहा कि पुण्य वे पवित्र कर्म हैं जो जीवन को सुख समृद्धि और शान्ति प्रदान करते हैं। समाज में फैली हुई अमीर गरीब की खाई को धनिक व्यक्ति चाहे तो बहुत कुछ मिटा सकते हैं। समृद्धि जब अनेक व्यक्तियों के बीच बांट दी जाती है तो अनेक जीवन दीप जो बुझने को होते हैं फिर से जल उठते है। इस पर रीतेश मुनि मसा ने कहा कि किसी भी व्यक्ति की आलोचना करना महापाप की श्रेणी में आता है।आलोचना वो ही करता है जिसका जीवन विवादों में रहता है।आलोचना करने से पूर्व हम स्वयं अपने आप की कसौटी करे। जीवन मे अनेक आरोह अवरोह आते है।जीवन उसी का सफल होता है।जो स्वयं बदलना जानता है। प्रभात मुनि ने मंगलाचरण के साथ कहा कि उपेक्षित जीवन जीने वाला समाज पर बोझ है। उपेक्षा नही करनी चाहिए।यह अवगुण धर्म से विचलित करने वाला है। पतन उत्थान कर्म प्रधान है।कर्म की गति को कोई नही जानता है।कल का भरोसा नही है अतः जीवन रूपी वृक्ष से पता टूट कर गिर जाए,उसके पूर्व आत्म कल्याण के लिए पुरुषार्थ करना होगा।संतो के दर्शन के लिए सेहरा प्रान्त से श्रावकों का आवागमन हुआ।शांतिलाल बम्बोरी प्रकाश टेलर पारस भोगर हिमत भोगर रमेश बोल्या एवम नवयुवकों ने संतो के प्रवचन का लाभ लिया।

Pavan Meghwal
Author: Pavan Meghwal

पवन मेघवाल उदयपुर जिले के है। इन्होंने मैकेनिकल इंजिनियरिंग की पढ़ाई के बाद स्टार्टअप शुरू किए। ये लिखने-पढ़ने के शौकीन है और युवा पत्रकार है। मेवाड़ क्षेत्र में पत्रकारिता कर रहे है।

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