चमार रेजीमेंट के सैनिक संतराम ‘‘वार मेडल’’ व ‘‘बर्मा स्टार 1939 – 45’’ से हो चुके है सम्मानित
पंकज कुमार सिंह/कानपुर – भारत के वीरों की ख्याति दुनियाभर में जाहिर है लेकिन भारत में ही बहुत से ऐसे अदम्य साहस के धनी वीर हैं जो उपेक्षा के चलते आज भी गुमनाम हैं। पिछले दिनों जेनयू दिल्ली के शोधार्थी व खोजी साहित्यकार सतनाम सिंह ऐसी ही ऐतिहासिक विरासत को सामने लाए जिसको जानकर सदियों से उपेक्षित समाज को अपने शौर्य और वीरता के गौरव की मिसाल मिली है। यह मिसाल है भारत की ब्रिटिश हुकूमत के दौर की ‘चमार रेजीमेंट’ के बहादुर सिपाही संतराम की वीरता की। संतराम ऐसी शख्सियत हैं जिन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध में बहादुरी दिखाई।
हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले के गोन्द्पुर बुल्ला गांव में साहित्यकार व जेएनयू के शोधार्थी सतनाम सिंह ने सैनिक संतराम से भेंट की। संतराम लगभग 105 वर्ष की उम्र पूरी कर चुके हैं। हालांकि सुनने व बोलने में इनको बहुत कठिनाई होती है। यादाश्त भी कमजोर हो चुकी है। बहादुर सैनिक संतराम ने अपने साथियों, अंग्रेज अफसरों व महत्वपूर्ण घटनाओं की जानकारियां सतनाम सिंह दी।
उन्होंने बताया कि 1942 में वे पंजाब के गढ़शंकर में भर्ती हुए थे। मेरठ में ट्रेनिंग ली और फ़िर बर्मा में जापान से हुए युद्ध में भाग लिया था। वे चमार रेजिमेंट की ‘ए’ कंपनी में सैनिक थे। संतराम की जंग में बहादुरी और शौर्य पर उन्हें ‘वार मेडल’ तथा ‘बर्मा स्टार 1939 -45’ से सम्मानित किया गया था। 25 जून 2023 को दिल्ली के पश्चिमपुरी में आयोजित होने वाले एक कार्यक्रम में सैनिक संतराम को ‘बौद्धाचार्य शान्तिस्वरूप बौद्ध’ अवॉर्ड से सम्मानित किया जाएगा।
बिना सहारे के चलते फिरते संतराम
सैनिक संतराम की मार्शल बॉडी आज भी अपने जज्बे की गवाही पेश करती है। 105 वर्ष उम्र की दहलीज पार करने के बाद भी बिना किसी सहारे के वे चलते फिरते हैं और दैनिक काम-काज खुद ही निपटाते हैं। बुढापे के कारण कम सुनाई देता है पर जोर डालने पर याददास्त पुनः संकलित कर लेते हैं। अभी भी स्वस्थ दिनचर्या और अनुशासन के साथ जीवनरत हैं।
भारत की मार्शल हिस्ट्री में ‘चमार रेजीमेंट’
चमार रेजीमेंट की नींव 1942 में पंजाब की 27वीं बटालियन के रूप में डाली गई थी। बाद में वर्ष 1943 में इसे स्वतंत्र रेजीमेंट बना दिया गया था। जेएनयू दिल्ली के शोधार्थी सतनाम सिंह की शोध रिपोर्ट के अनुसार 1946 में चमार रेजीमेंट के आजाद हिन्द फौज के समर्थन में एक आंतरिक विद्रोह के कारण ये भंग हो गई थी। भारतीय सेना में इसकी बहाली की मांग सन् 1947 से लगातार 1952, 1962, 1971, 1982, 1992, 2007, 2017 के साथ जारी हैं। इस मांग की आवाज को क्रांतिकारी नेता पीएल कुरील ने संसद तक पहुंचाया था।